पिछले तीस सालों से वह पंचायत प्रधान थे। लोगों के सुख दुख में वे हमेशा शामिल रहते थे। कारण वे पहले दुख की व्यवस्था करते थे फिर उसे दुर करके सुख में बदल देते। शादी ब्याह जैसे आयोजनों में अवश्य पहुंचते थे। ये उनका जनसेवा का अपना स्टाइल था। उनका नाम माता पिता ने रामदेव रखा था लेकिन क्षेत्रीय भाषा का कलेवर चढ़ने से वे रामदेउ बन गये थे। यों पत्नी को चार बच्चे और सीओ साहब को रिश्वत छोड़कर, किसी को कुछ दिया नहीं । सुबह सुबह विडॉल मोबिल का डिब्बा संभाले मैदान की दिशा में रेल बने हुए थे