उलझने से सुलझने तक

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“उलझने से सुलझने तक” / कहानी / सन्दीप तोमर स्टेला जिन्दगी के थपेड़े झेलते हुए एक बार फिर दिल्ली आ गयी, रोहन का ठीक से कहीं भी सेटल न हो पाना उसके लिए बड़ी सिरदर्दी थी। वह छोटी-मोटी नौकरी शुरू करता, मन उकता जाता तो नौकरी छोड देता। दोनों ने एक फ़्लैट किराये पर लिया हुआ था। प्रेम-विवाह किया था दोनों ने, रोहन एक ब्राह्मण परिवार का लड़का है तो स्टेला दलित क्रिश्चियन। आशुतोष ने दोनों की शादी में बहुत मदद की थी। जब उसे लगता कि वह दु:खी है, तब वह आशुतोष को ही याद करती,