मिराज

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देवाशीष उपाध्याय मोहब्बत भी एक अजीब नशा होता है। जिसे लग जाये उसका तो भगवान ही मालिक है।इश्क के फरेब में, लोगों को बर्बाद होते देखा है। मोहब्बत की चाहत में, जिन्दगियाॅं तबाह होते देखा है।बात उन दिनों की है, जब मेरा एडमिशन एक नये स्कूल में कक्षा नौ में हुआ था। पापा का ट्रांसफर होने के कारण शहर बदला, स्कूल बदला, मोहल्ला बदला, यहाॅं तक कि दोस्त भी बदल गये। कुछ दिन पढ़ाई होने के बाद स्कूल लगभग डेढ़ महीने के लिए बंद हो गया। छुट्टियों में मैं मम्मी के साथ नानी के घर चला गया। छुट्टियों अभी पूरी खत्म