अब सबका ध्यान किशोर की ओर गया जो खुद को अपराधी सा मानता, एक ओर बैठा, अपने मोच खाये पैर को सहला रहा था। सुमित्रा जी से नज़र मिलते ही किशोर के आंसू आ गए। "देख रहीं न छोटी अम्मा? इत्ते दिनों में जे चौथी बार दौरा पड़ा तुम्हारी बहू को। हम तो परेशान हो गए। न अम्मा को रोक पाते न जानकी को रोक पा रय। अब तुमई करौ कुछ।" सुमित्रा जी किशोर के सिर पर हाथ फेरतीं चुपचाप बैठी रहीं। वे और कर ही क्या सकती थीं? सबके इधर-उधर होते ही सुमित्रा जी ने तिवारी जी के सामने