धरती का दर्द आवारा बादल ख़ुशी से गुनगुनाता हुआ नीचे जा रही नदी को देख कर दीवाना हो रहा था। साफ़ हवाएँ उनके इश्क़ को देखकर तेज़ी से बहने लगी। मौसमों में मोहब्बतें घुल घुल जा रही थी। पत्ते हिल हिल कर अपने होने की बात बता रहे थे। पशु पक्षी सब अपनी अपनी धुन में बिना किसी डर के खेल कूद रहे थे। नदी ने बादल से पूछा तू इतना दीवाना क्यों हो रहा है। आज ये पागलपन क्यों। बादल ने हँसते हुए कहा-तू भी तो मुझे सौ साल के बाद हँसती खिलखिलाती सुन्दर अल्हड़ नवयौवना सी लग रही है।