यह कहानी नहीं है (कहानी - पंकज सुबीर) वैसे तो इस कहानी .... क्षमा करें मैं तो पूर्व में ही लिख चुका हूँ कि ये कहानी नहीं है, तो फिर इसे कहा क्या जाए ...? चलिये, इसे एक घटना कह लेते हैं। हाँ तो इस घटना का केन्द्रीय पात्र मैं ही हूँ्? और कोई हो भी कैसे सकता है ? अपने आपको केन्द्रीय पात्र रखने में जो आनंद है वो किसी दूसरे को नायक बना देने में कहाँ है। हम सब इसी भ्रमजाल में तो जी रहे हैं कि हम ही नायक हैं। ख़ैर तो फ़िलहाल तो यह तय हुआ