मजबूरीआर ० के ० लालबाबूजी मुझे मारिए। मुझे पुलिस में दे दीजिए । मैंने कैसे हिम्मत की, यह सब करने की । वह भी आपजैसे भले व्यक्ति के साथ। फिर राधिका रोने लगी और कहने लगी, “आदमी की मजबूरी उसे कितने नीचे गिरा देती है कि वह कुछ भी कर डालता है। मान मर्यादा भी वह भूल जाता है। मुझे इस दुनिया में जीने का कोई हक नहीं है । मैं फांसी लगा लूंगी या गाड़ी के नीचे लेट जाऊंगी। बस आप मुझे माफ कर दीजिये”।राधिका कई सोसाइटी में जाकर घरों में बर्तन साफ करने, झाड़ू-पोंछा का काम करती थी।