अरुंधति

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विजय.. विजय.. दरवाजा खोलो.. विजय.. अरे अरु तुम.. इतनी रात को मेरे कमरे में आई हो सब ठीक है ना? (विजय ने दरवाजा खोलते ही पूछा) विजय मैं कैसी लग रही हूँ.. (अरुंधति ने पूछा) सच में अरु हद करती हो.. तुम ये पूछने इस वक़्त ऐसे चोरी-छिपे आई हो.. पागल लड़की (विजय ने झुंझलाते हुए कहा) (अरुंधति अपना लहंगा संभालते हुए विजय के पास आकर बैठ गई) हाँ विजय.. जब भी तैयार होती हूँ तो यही चाहती हूँ पहली नज़र मुझ पर तुम्हारी ही हो.. मुझे सबसे पहले देखने का हक़ तुम्हारा ही है..(अरुंधति ने बड़े ही स्नेह से