महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – दस सुबह का वक्त था। बाबाजी संत निवास के बाहर वाले चबूतरे पर बैठे थे। वह दूर कहीं शून्य में देखते हुए अंगुलियों से अपनी दाढ़ी के बालों को सुलझा रहे थे। वानखेड़े जी बाबाजी के दांयी ओर खड़े माला फिराने में व्यस्त थे। भक्त जैसे ही प्रणाम करने के लिये बाबाजी के पैरों की तरफ बढ़ते, संतु महाराज यह कहते हुए उन्हें पीछे धकेल देते कोई बाबाजी को छुए नहीं, दूर से प्रणाम करें। भक्त ठिठक जाते और दूर से ही बाबाजी को प्रणाम कर नीचे बिछे फर्श पर बैठ जाते। बाबाजी भक्तों की