तर्पण

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रमेसर के बुढ़ौती में जाके औलाद हुआ वो भी बेटी । वरना तो मेहरारू मन में मान चुकी थी कि बेऔलाद ही मरेगी लेकिन अब जाकर देव सहाय हुए और उसके महीने के चौदह व्रतों के फल स्वरूप उसकी गोद में लक्ष्मी डाल दी । छठियार को उत्सव की तरह मनाने की तैयारी होने लगी । सभी खुश थे सिवाय बड़के भैया बटेसर के परिवार के अलावा । भाई की खुशी से बटेसर खुश तो थे लेकिन पिता की जायदाद का हिस्सेदार आ गया जानकर थोड़े उदास थे । बटेसर की पत्नी के सीने में तो आग लगी हुई थी । समारोह