औरतें रोती नहीं - 6

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औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 6 हवा, तुम कल आना श्याम के अंदर उबाल सा आ गया। लगा शाम का खाया-पिया उलट देंगे। किसी तरह अपने को समेटकर उठे और बाहर चले आए। तीन दीवारों वाले कमरे का एक हिस्सा भी उनका जाना-पहचाना नहीं लग रहा था। अनजाने से पांच युवक। अपनी धुन में खोए। वे घर से बाहर निकल आए। सीधे कदम स्टेशन की तरफ बढ़े। वहीं प्लेटफॉर्म पर बैठकर उन्होंने खूब उल्टी की और पस्त होकर सीमेंट की बेंच पर लेट गए। घंटे भर बाद होश आया, तो जेब टटोलकर देखा। पर्स था। अठन्नी निकालकर स्टेशन की