वट सावित्री व्रत/पूजा भारत के भिन्न भिन्न प्रान्तों में ज्येष्ठ माह में की जाती है. वट वृक्ष की छाया में होने वाला यह व्रत सती सावित्री के आख्यान से जुड़ा है जिसका वर्णन महाभारत के वनपर्व में युधिष्ठिर –मार्कंडेय सम्वाद में आता है. काल की गति में बहते हुए वट सावित्री व्रत का महत्व विवाहित स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु की कामना के व्रत के रूप में रह गया. वट वृक्ष के नीचे सावित्री की कथा बहती रही उसका मर्म खोता रहा. बदलते परिवेश में नारीवाद ने पितृसत्तात्मक परम्पराओं का विरोध प्रारंभ किया. वट सावित्री जैसे पर्वों को पुरुष प्रधानता