कुबेर डॉ. हंसा दीप 38 डीपी के मार्ग दर्शन के चलते नई कंपनी आकार ले रही थी। हालांकि, ‘अपटिक’ ही कमीशन के आधार पर उनके निवेश सम्हालने वाला था पर डीपी के दिमाग़ में भविष्य के लिए लंबी योजनाएँ थीं। अलग-अलग विभाग हों, हर कार्यकारी व्यक्ति के पास अपनी रुचि के बाज़ार की स्टडी हो, रोज़ के भाव-ताव पर नज़र रखी जाए, बाज़ार का ट्रेंड पता लगे तो भावी संभावनाओं की सूचियाँ बनें। थोड़ी पूँजी के रहते नये निवेश अधिक नहीं थे बल्कि योजनाएँ अधिक थीं। सीमित स्रोत विस्तृत योजनाओं को नियंत्रित करने के लिए सीमा रेखाएँ अंकित कर देते