अभिव्यक्ति - काव्य संग्रह पार्ट- 1

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"निःशब्द"शब्द को निःशब्द कर दूं, वाणी को विराम दूँ,,ह्रदय में है आज कुछ ऐसा करूँ की स्वयं को अभिमान दूँ ।।संवेदनाएं है मृतप्रायः आज उन्हें जाग्रत करूँ,, हूँ मैं मानसपुत्र ये स्वयं को ही सिद्ध करूँ।।कोलाहल बहुत है जग में, शोर में मैं खो गया,,जग जाऊं गहरी निद्रा से जीवन को सार्थक करूँ।।निष्कंटक नहीं है राह मेरी, पर जग में हर कोई ऐसा, मैं अकेला तो नहीं,,जीया पर क्यो निरर्थक जीया ?आज क्यों न पश्चताप करूँ ?चल मुस्करा स्वयं से बात कर ये तय किया, आज की सुबह इक नई सुबह हुई,,जगा, उठा ओर चला इक नई शुरुआत हुई ।।आज सुनाई दे रही चिड़ियों की