कहानी पुरानी दिल्ली की

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सन् 2001, दीवाली जा चुकी है और मीठी मीठी सी ठंड दस्तक दे चुकी थी । रविवार का दिन था तो घर के उस समय के सबसे छोटे युवराज यानी की हम 6 बजे तक सो कर नहीं उठे थे । उस समय के हिसाब से अगर आप प्रातः 6 बजे सुस्ता रहें हैं तो आपको निशाचर की श्रेणी में शामिल कर दिया जाता था ।माता श्री गुस्साई और बोलीं की याद नहीं की आज बाऊ जी (दादा जी) के साथ पुरानी दिल्ली जाना है, बुआ के घर कार्ड देने । जैसे ही ये बोल कानों तक पहुंचे, मैं स्प्रिंग