कुबेर डॉ. हंसा दीप 35 और अब डीपी के उन आँसुओं को मुक्ति मिली जो इतने दिनों से अंदर ही अंदर एक दूसरे से जूझ रहे थे। इस संकट से उबर कर बाहर आने की यह कहानी भी अपने आप में एक दास्ताँ थी। आँसुओं की व्यथा कहती रही, बताती रही, शब्द देती रही – “जब कुछ नहीं था न ताई तो किसी भी तरह का कोई भय सताता नहीं था मुझे। आज मेरा जीवन-ज्योत का परिवार है, मेरी ज़िम्मेदारियाँ हैं, ये ग्यारह बच्चे हैं मेरे जिन्हें मैरी ने उनके पिता के नाम के लिए अपने भाई का नाम दिया