....और जिंदगी चलती रही

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तीन दिन हो गए थे चलते-चलते...पाँव में छाले निकल आये थे। शरीर धूल और पसीने से तर-बतर हो चला था। गाँव इतना दूर पहले कभी नहीं लगा था।...लगता भी कैसे ...कभी यूँ पैदल ,परिवार के साथ... गृहस्थी को सर पर लादकर भी तो नहीं चले थे। सच मानो तो वो अपने साथ अपना अतीत,वर्तमान और भविष्य...सब साथ ले आये थे।रास्ता ....खत्म होने का नाम भी नहीं ले रहा था। अजगर के मुँह की तरह बढ़ता हुआ रास्ता उनके हौसलों को तोड़ रहा था...पर करते भी तो क्या।डॉक्टर ने 20 दिन बाद की तारीख दी थी।कितना हाथ-पैर