विश्रान्ति - 8

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विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) ("ये लो बेटी"- बूढ़े ने ढेरों चमचमाते हुए चाँदी के सिक्के दुर्गा मौसी के आंचल में उड़ेल दिये)-7 - “जा बेटा ! दुर्गा मौसी को उसके घर तक वापस छोड़ दे। आधी रात बीत चुकी है।” बूढ़े ने चटपट बिना किसी भूमिका के बेटे को आवाज लगाते हुए कहा। जैसे दुर्गा मौसी को जल्दी से जल्दी वहाँ से विदा कर देना अथवा भगाना चाह रहा हो। ……और फिर दुर्गा मौसी की ओर वापस घूमकर बोला - “....... और यह लो दुर्गा ! मेरी ओर से