कुबेर डॉ. हंसा दीप 34 एक बार बाबू कुछ ऐसी सोच में डूबे चल रहे थे कि पत्थर से टकराकर भड़ाम गिरे थे। हाथ-पैर बुरी तरह छील गए थे। लोगों ने उन्हें उठाया था और थोड़ी देर बैठने के लिए कहा था। तब तो सिर्फ जहाँ से चमड़ी छिली थी वहीं दर्द था लेकिन एक दिन बाद उनका पूरा शरीर कुछ इस तरह दर्द कर रहा था मानो किसी ने हथौड़े से ठोक-पीट कर उसे जगह-जगह से चोटिल कर दिया हो। उस दिन देखा था उसने दर्द से कराहते बाबू को बच्चों की तरह रोते हुए। उनकी आँखों से धार-धार