रक्षाबंधन पिछले तीन-चार या शायद उस से भी अधिक महीनों से भैया ने मुझे फोन नहीं किया था। गाहे बगाहे मैं जब फोन करती, भैया से बातें हो नहीं पाती। भाभी अलबत्ता उनकी व्यस्तता का रोना रोती रहतीं। रक्षाबंधन आ रहा था, मुझे बार बार अपनी बचपन वाली 'राखी' याद आ रही थी। कितना बड़ा त्यौहार होता था तब ये। रक्षा बंधन के लिए मम्मी हमदोनों भाई-बहन के लिए नए कपड़े खरीदती। बाज़ार में घूम घूम भैया की कलाई के लिए सबसे स्पेशल राखी खरीदना। सुनहरी किरणों से सजी, वो मोटे से स्पंज नुमा फूल पर 'मेरे भैया' लिखा होना। समय के साथ राखी के स्वरुप और डिज़ाइन