स्वप्न हो गये बचपन के दिन भी... (13)

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स्वप्न हो गये बचपन के दिन भी (13)'वह गहरी नीली फोम की जर्सी...' मेरे ख़यालों के बियाबान में गहरे नीले रंग की फ़ोम की एक जर्सी अपनी बाँहें फैलाये उड़ती रहती है लगातार। वह कभी बारिश में भीगती है, कभी ठण्ड में ठिठुरती है और कभी गर्म हवाओं में झुलसती किसी काँटेदार वृक्ष में उलझी फहराती रहती है--हाहाकार मचाती हुई, मुझे पुकारती हुई और मैं अनासक्त भाव से मुँह फेरे रहता हूँ। अब तो उससे विरक्त हुए प्रायः आधी सदी बीतने को है, वह फिर भी मेरा पीछा नहीं छोड़ती ! सोचता हूँ, यह कैसी विरक्ति है, कैसा विराग है, जो