शापित - 5 - अंतिम भाग

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शापित आशीष दलाल (५) ‘भैया, दुख रहा है. धीरे से पकड़ो न हाथ.’ चिंटू ने नमन के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए दर्द से तिलमिलाते हुए कहा. ‘अच्छा धीरे से बस !’ चिंटू के चीखने पर नमन का आवेग कुछ कम हुआ उसने उसके हाथ पर अपनी पकड़ कुछ ढ़ीली कर दी. ‘नहीं, मुझे नहीं खेलना है यह खेल. हम दूसरा खेल खेलेंगे.’ तभी चिंटू उठकर बैठने की कोशिश करने लगा. ‘ठीक है. मेरे शेर. अब दूसरा खेल खेलते है.’ कहते हुए नमन ने चिंटू को अपने सीने से लगा लिया. ‘छोड़ो मुझे भैया. ये अच्छा