महामाया - 2

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महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – दो प्रवचन हॉल के पीछे वाला दरवाजा सीढ़ियों की तरफ खुलता था और सीढ़ियां एक लम्बे गलियारे में जाकर समाप्त होती थी। गलियारे में विलायती रेड कार्पेट बिछा था। गलियारे के अंत में एक बड़ा सा दरवाजा था। दरवाजे के उस पार एक वातानुकुलित सुसज्जित कमरा था। कमरे में सामने की ओर सिंहासन नुमा कुर्सी पर बाबाजी बैठे थे और नीचे दस पंद्रह भक्तगण। बाबाजी की आँखे बंद थी। इतने लोगों की मौजूदगी के बावजूद कमरे में निस्तब्ध शांति थी। अखिल दूर से ही बाबाजी को प्रणाम कर पीछे की पंक्ति में बैठ गया। बाबाजी