तस्वीर में अवांछित (कहानी - पंकज सुबीर) (2) रंजन उठ कर टीवी चालू करना चाह ही रहा था कि अचानक वही पता नहीं कौन से नाम वाला आ गया ‘‘क्या बात है आज तो घर पर ही हैं।’’ ‘‘हाँ बस ..... आइये ना ’’ कहते हुए रंजन ने उस आदमी को बैठने का इशारा किया। कुर्सी पर बैठने के बाद उस पता नहीं कौन से नाम वाले आदमी ने सामने टेबल पर रखी किताब उठा ली और उसे पलटने लगा। रंजन ग़ौर से उस राधेश्याम, घनश्याम या शायद दिनेश को देखने लगा। अभी दो रोज़ पहले इंदौर के उस कार्यक्रम