महामाया - 1

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महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – एक आधी रात से ही हरिद्वार के कनखल घाट पर लोगों की आवाजाही शुरू हो गई थी। गंगाजी के ठंडे पानी में जैसे ही लोग नहाने के लिये उतरते ‘डुबुक’ की आवाज के साथ ही ‘हर्रऽऽ हर्रऽऽ गंगेऽऽ’ का कंपकपाता स्वर वातावरण में फैल जाता। रात सिमटने के साथ ही घाट पर भीड़ बढ़ती जा रही थी। पौ फटते ही घाट के ऊपर की तरफ बने विशाल परकोटे का द्वार खुला और सैकड़ों साधुओं की जमात घाट की ओर बढ़ने लगी। लम्बी दाढ़ी-जटाएँ, शरीर पर भस्म, अंगारों सी दहकती आँखें, किसी के हाथ में चिमटा,