शापित - 2

  • 11.4k
  • 4.6k

शापित आशीष दलाल (२) पूरे वाकये को आज अचानक ही याद करते हुए अपने हाथ में थाम रखे चाय के कप पर नमन की पकड़ मजबूत हो गई. चंद ही पलों में हथेली पर उभर आई पसीनें की बूंदों की वजह से कप नमन के हाथ से फिसलकर दूर जा गिरा. ‘आज फिर से कप तोड़ दिया?’ आखिर हो क्या गया है तुझे?’ कप के टूटने की आवाज सुनकर सुनंदा नमन के कमरे में दौड़ी चली आई. नमन ने जैसे सुनंदा की उपस्थिति महसूस ही न की. उसकी सूनी आंखें कमरे की खिड़की से बाहर दूर कुछ खोज रही थी.