तस्वीर में अवांछित (कहानी - पंकज सुबीर) (1) ‘‘रंजन जी, आ रहे हैं ना आप ?’’ उधर से फ़ोन पर आयोजक ने शहद घुली आवाज़ में पूछा। ‘‘नहीं भाई साहब मैं पहले ही कह चुका हूँ रविवार को मैं कार्यक्रम नहीं लेता। एक ही दिन मिलता है परिवार के साथ बिताने को। उस पर भी पिछले दो माह से रविवार को भी व्यस्तता बनी रही है इसलिए अब कुछ आराम चाहता हूँ।’’ रंजन ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया। ‘‘रंजन जी हम आपका नाम प्रचार में उपयोग कर चुके हैं’’ आयोजक ने दयनीय स्वर में कहा। ‘‘मगर मैंने तो आपको स्वीकृति