बात उस समय की है जब हमने गांव छोड़ा , मानो तकरीबन 15-20 साल पहले की। तब मैं और मेरा भाई इतने छोटे थे कि सही से चल भी नहीं पाते थे। धीरे धीरे हम बढ़ने लगे। मैं, मेरा भाई, माता-पिता और हम सब दादा जी और दादी जी के साथ बड़ी खुशी से अपने गांव कुलधरा में रहते थे। हर तरफ मानो प्यार, खुशी, हरियाली और सहयोग की भावना थी। दुख का आना जाना था, पर कभी किसी को अनुभव ही नहीं होता था। पूरा गांव जैसे एक परिवार की तरह लगता था। मेरे दादा बंसीलाल गांव के साथ