मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 18

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मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन कहानी 18 लेखिका दिव्या विजय बियाबान उसकी शुरुआत नहीं थी, उसका अंत भी मालूम न था। व जिस पल आया, उसी पल ख़त्म हो गया। तेज़ी से उसने झपट्टा मारा, अपने पंजों में शिकार कसा और उतनी ही तेज़ी से चला गया। उसी के साथ ख़त्म हो गया सब कुछ। क्षणिक तौर पर नहीं, लम्बे अंतराल के लिए। यह अंतराल कितने भी समय के लिए हो सकता था, इ सृष्टि के अंत तक भी। जीवन की गति, उद्दाम चाहनाएँ, छोटी इच्छाएँ, सह सुख, गहरे दुख औ उनका स्वामित्व रखते मनुष्य सब विलीन हो गए थे। संसार अब