होने से न होने तक - 14

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होने से न होने तक 14. नीता और केतकी दोनो ही कालेज नहीं आए थे। क्लास हो जाने के बाद मेरा रुके रहने का मन नही किया था। कालेज से निकल कर मैं गेट के बाहर रिक्शे के इंतज़ार में खड़ी हो गयी थी। कोई ख़ाली रिक्शा दूर तक नहीं दिख रहा। तभी मानसी चतुर्वेदी का रिक्शा बगल में आकर खड़ा हो गया था,‘‘किसी का इंतज़ार कर रही हैं?’’उन्होने पूछा था। मैं एकदम चौंक गयी थी,‘‘किसी का नहीं। रिक्शा देख रही हूं। कोई ख़ाली नही मिल रहा।’’ ‘‘अरे आज रिक्शे पर जा रही हैं?’’उन्होंने अचरज से मेरी तरफ देखा था।