आरे मिनि कि याद् आ रहि हे क्या...?सन्तोष का मिनि नाजाने अब कैसे होगि..मिनि कि हातों से बानाये हुए मोमोस्, एग् अमलेट् को सन्तोष तो अभि तक् भुला नेहि पाया है...जब् कुछ इस् तरहा के मस्तियां, दोस्तों के बातैं सुनने को मिलता हे तो वो कुछ समय के लिये बरफ् के उस सेहेर को खिचा चला जाता है...जाहां पर वो पेहलि नजर मे हि प्यार कर बैठा था..वो भि मिनि से..बरफ से टक्कर देने वालि मिनि कि वो गैरे मुहँ, जो ऊन से बुने हुए रेड् कलर के क्याप् के अन्दर से बहत हि क्युट् लग रहि थि...जिसे देख के