“देखो बैन, हमाय पास कौन किशोर के बाबूजी बैठे हैं जौन हम निश्चिंत रहें. इतै तौ एक एक दिन मुश्किल में कट रओ. इन बच्चन की ज़िम्मेदारी सें फ़ारिग होंय तौ गंगा नहायें. अब तुम हो गयीं शहर वालीं, सो तुमै तौ ओई हिसाब सें चलनै. बिठाय रओ मौड़ी खों. हमें तौ गांव में रनैं, सो इतईं कौ कायदौ भी देखनै.” सुमित्रा जी कट के रह गयीं. “शहर वाली” तो जैसे अब उनके लिये गाली हो गयी थी. बात-बात में शहर वाली कह के ताना देना कुन्ती कभी न भूलती. किशोर की शादी गर्मियों में ही थी, तो सुमित्रा जी के लिये