हलंत

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हलंत हृषीकेश सुलभ बात बहुत पुरानी नहीं है। कुछ ही महीनों पहले की बात है। वह हादसों का मौसम था। उन दिनों सब कुछ अप्रत्याशित रूप से घटता। जिस बात की दूर-दूर तक उम्मीद नहीं होती, वह बात सुनने को मिलती। जिस घटना की कल्पना नहीं की जा सकती, वह घट जाती। जिस दृश्य को सपने में भी देखना सम्भव नहीं था, वह अचानक आँखों के सामने उपस्थित हो जाता। अजीब समय था। विचित्रताओं से भरा हुआ समय। यहाँ तक कि उन दिनों सुख भी अप्रत्याशित ढंग से ही मिलता। यानी, कुछ अच्छा भी होता तो ऐसे अचानक