गुनगुनी धूप सी बातें:सहपाठी बोला करते हैं "वे दिन बहुत याद आते हैं।"न सुबह होने का पता होता था, न शाम होने का। कालेज की भाग्यशाली सीढ़ियों में फटाफट चलने का आनन्द अलग होता है। बचपन की भूतों की कहानियों से निकल, वास्तविक जीवन की कहानियां बनने लगती हैं। पीछे मुड़कर देखने का सुख-दुख कुछ और ही होता है जैसे रामायण और महाभारत को देखने-पढ़ने का।फेसबुक पर सहपाठियों ,शिक्षकों आदि को ढूंढना सरल हो गया है। बहुत बार मिलता-जुलता नाम एक आभासी सुख की खोज में निकल पड़ता है। बहुत बार उपनाम याद रहता है तो संशय के साथ बातें