और कहानी मरती है (कहानी - पंकज सुबीर) (3) ‘अच्छा’ माही कुछ निर्णायक स्वर में बोला, और कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया। अपने शरीर पर लिपटा एकमात्र टावेल भी उतारकर फ़ैंक दिया उसने। अब वह एकदम आदम-ज़ात अवस्था में मेरे सामने खड़ा था, अलफ़ नग्न। मैंने ग़ौर से उस शरीर को देखा जिसे मैंने ही ईज़ाद किया है। ‘लो अब मैं भी संबोधनों और संबंधों से मुक्त होकर केवल शरीर बन गया।’ दोनों हाथ ऊपर उठाते हुए बोला माही, ‘अब मैं माही नहीं रहा, केवल शरीर हूं और शरीर बनकर ही वापस लौट रहा हूं तुम्हारे अवचेतन में, जहां