काले कोस, अंधेरी रातें - 3 - अंतिम भाग

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काले कोस, अंधेरी रातें (3) छोट उम्र से ही सबका सपोर्ट थी ...सबका खयाल रखती थी ...देहरादून से भी जब आती तो मेरे लिए कुछ- न –कुछ जरूर लेकर आती, दो डिब्बा चूड़ी, नेलपालिस चाहे फिर घर का ही कोई छोटा –मोटा सामान । सितंबर में पढ़ाई खतम हो जाना था, अब तक तो आ आ गई होती यहाँ । देहरादून थी तो जब मन होता चली आती थी ...छुट्टी नहीं भी होता तोस रात को बस में बैठती, सुबह यहाँ पहुंचती, फिर रात को लौट जाती ... वे अभया की तस्वीर की तरफ निर्विकार भाव से देखे जा रही