दिन जुमेरात शहादत का महीना मोहर्रम से दो दिन पहले मेरी ज़िंदगी का सबसे अहम हिस्साजिस से शुरू हुआ मेरी ज़िंदगी का किस्सा मेरे बाबामुझे वो दिन कभी याद करने की ज़रूरत नही।क्योंकि जिसे भुलाया न जा सके वो कभी यादों का मोहताज नही होता। उस दिन में स्कूल से घर आने के लिए रवाना हुई।। मेरे बाबा बीमारी से जूझ रहे थे। अस्पताल में वो अपनी ज़िंदगी के आखरी पल गुज़ार रहे थे।यू तो में बाबा से मिलने स्कूल से आकर जाया करती थी लेकिन उस दिन अजीब सा एहसास हुआ।मानो कोई मुझसे मेरी अज़ीज़ चीज़ छीन रहा हो।ओर में सीधे