उन दिनों की ये बात है, जब न तो टीवी होता था और न ही स्मार्टफ़ोन। सन्ध्या होते-होते घर में माँ, दादी चूल्हा सुलगा लेते थे। खाना-पीना, चौका-बर्तन करके सब जल्दी फ्री हो जाते थे।...और तब, हर रात बच्चों को दादी-नानी से सुंदर कहानियाँ सुनने को मिलती थीं। कभी ऐसी कहानी सुनी है आपने भी ? चलिए! ऐसी ही दादी से सुनी एक कहानी मैं आपको सुनाता हूँ-- एक छोटे से गाँव में एक बुढ़िया रहती थी । सच में बहुत ही बूढ़ी...पर थी बड़ी चतुर और हँसमुख। कमर झुककर उसकी दोहरी सी हो गई थी। अवस्था भी यही कोई