भदूकड़ा - 32

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कुन्ती के इस फ़ैसले का लेकिन कुन्ती कहां किसी की सुनने वाली? यदि सब राज़ी हो जाते तो शायद कुन्ती अपने फ़ैसले से पलट जाती, लेकिन सब के विरोध ने फिर उसके भीतर ज़िद भर दी. खुले आम कहती-“सब होते कौन हैं रोकने वाले? सब तो अपनी चैन की बंसी बजा रहे न? तो हमारा सुख क्यों अखरने लगा सबको? शादी तो अब हो के रहेगी.” बेचारा किशोर न हां कह पाता न ना. अजब मुश्किल में थी उसकी जान. स्कूल में पढ़ने वाला किशोर समझ ही नहीं पा रहा था कि ये नयी धुन क्यों सवार हो गयी अम्मा