ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज नीला प्रसाद (3) शाम शाम होते - होते ऐसा लगा जैसे हम सब एक दूसरे के सामने नंगे हो गए। मैं तो खैर नई थी पर लगा कि जैसे सबों को सबों का पता था पर फिर भी किसी को किसी का पता नहीं था। यह पता होना वैसे ही था जैसे एक दूसरे के शरीर के अंगों, आकारों और उभारों का पता होना जिन्हें हमने कभी देखा नहीं था, पर जिनका अनुमान सबों को था। कपड़े उतर जाने पर एक दूसरे के सामने खड़े होने की शर्म से घिरे सब चुप हो गए। ऑफिस में