कर्म-फल सलाखों के बीच घिरा हुआ बैठा था वह. पूरी तरह से पीली पड़ चुकी आँखें. पिचके हुए गाल,मुख पर छाई गहरी उदासी और बेतरतीब बालों की सफेदी उसे उम्र से पहले ही बूढ़ा बनाने पर आमादा थे.नीला विस्तृत आकाश, उदित एवं अस्त होता सूर्य चाँद, सितारे देखे हुए तो उसे बरसों बीत गए थे. गहन रात्रि का दूसरा पहर था किंतु नींद उससे कोसो दूर थी. बचपन की एक-एक घटना चलचित्र की भांति उसकी आँखों के आगे घूमने लगी । गाँव की पगडंडी पर सरपट दौड़ना, साइकिल के पहिए हाथों से घुमाते हुए भागना, खेतों में से छुप छुपकर