*न जाने मानव जात ने क्या करने की ठानी है।*स्वार्थ के इस खेल में हुआ मानव अभिमानी है,इस प्रकृति को मानव पहोचा रहा क्यू हानि है;न जाने मानव जात ने क्या करने की ठानी है।जो चाहिए स्वच्छ जल तो ये हमारी जिम्मेदारी है,पानी को साफ रखना ये रीत बहोत पुरानी है;न जाने मानव जात ने क्या करने की ठानी है।गंगा को देख इतना साफ आ गया आंखों में पानी है,क्यू हम नही रखते साफ इसे ये कहेता गंगा का पानी है;न जाने मानव जात ने क्या करने की ठानी है।गंगा हमारी माता है यह संतो की वानी है,तो भला अपनी