और कहानी मरती है (कहानी - पंकज सुबीर) (2) ‘तुम्हारी निशा ....?’ मैंने माथे पर बल डालते हुए कहा ‘निशा तुम्हारी कब से हो गई ? वह मेरी पात्र है, उस पर मेरा अधिकार है। तुम उसे अपनी समझने की भूल मत करो, मेरी क़लम का एक इशारा उसे तुमसे हमेशा के लिये दूर कर सकता है।’ अनुज कुछ देर मुझे घूरता रहा, फ़िर बोला, ‘वह मेरी क्यों नहीं है ? मैंने उससे प्रेम किया है, मेरे बच्चे की मां है वो। मैंने अपने जीवन के कुछ बेहद सुखद क्षणों को उसके साथ जिया है, भले ही वह जीवन एक