कुन्ती...

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(एक छोटा सा प्रयास हैं किसी ऐसी माँ की व्यथा को वर्णित करने का जिसने अपने परिवार की मान मर्यादा के लिए अपनेी मम्मता को विसर्जित कर दिया। फिर उसपर समाज और स्वयं ही उसका पुत्र उसपर कितने लांछन लगाए जाते हैं। उस करुण वेदना का सागर लिए ममता कब तक सह पायेगी ऐसी ही एक माँ हैं कुन्ती। त्रुटियों को क्षमा करियेगा )कुन्ती...कुन्ती हूँ मैं पुत्र मेरे तुमको क्या लगता है मैंने गंगा के समीप था तुझको फेक दिया माँ थी मैं, वो भी एक माँ हैं समझेंगी ममता को था इस लिए हाँ तुमको सौंप दिया जब छोड़ा था अपने दामन से तू