धनिया गोवर्धन यादव 2 खुशनुमा सुबह नहीं थी आज की। भयमिश्रित मातमी एकांत में भीगी हुई थी। दादू को तो जैसे काठ मार गया था। मां के अंदर गहरे तक मोम ही जम आई थी। दादू से गिड़गिड़ाते हुए उसने कारण जानना चाहा तो उसकी बूढ़ी आंखों से टपाटप आँसू बह निकले और जब वह माँ के पास पहुंची कारण जानने, तो बजाय कुछ कहने के उसने उसे सीने से चिपका लिया और फफक कर रो पड़ी। वह लगातार रोए जा रही थी। शंका और कुशंकाओं के जहरीले नाग उसके कोमल मन में, आंगन में, यहाँ-वहाँ विचरने लगे थे। जब