होने से न होने तक - 10

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होने से न होने तक 10. ‘‘बुआ मैं आपकी कुछ मदद करुं?’’ मैंने अपनेपन से पुकारा था। उन्होने चौंक कर मेरी तरफ देखा था। कुछ क्षण को हाथ ठहरे थे,‘‘नहीं बेटा।’’और वे फिर से काम में व्यस्त हो गयी थीं। शाम को आण्टी सही समय पर आ गयी थीं। उनके साथ यश को देखकर मुझे अच्छा लगा था। बुआ की स्वागत की मुस्कान में विस्मय था,‘‘अरे यश भी आए हैं?’’ जवाब आण्टी ने दिया था,‘‘असल में अम्बिका का घर देखने चल रहे हैं न। सोचा यश की भी राय मिल जाएगी। फिर रिपेयर्स और पालिशि्ांग वगैरह के लिए तो हमें