इला न देणी आपणी मैं एकटक उसे देखे जा रही हूँ, अपलक. जनक के पूर्वज निमि अगर इस कलियुग में भी पलकों पर ही रहते हैं तो वो निश्चिन्त ही इस समय स्वयं की पलकें झपकाना भी भूल गए होंगे. सच कह रही हूँ कि मैंने इस के पहले ऐसा सम्पूर्ण सौन्दर्य शायद ही कहीं देखा हो, दर्पण में भी नहीं. झुक कर सब्जी का डोंगा उठाती उस प्रोढा स्त्री का सौन्दर्य विधाता के खुले हाथों लुटाये रंग-रूप में ही नहीं है उसके व्यक्तित्व में ही गुंथा हुआ है. उसकी पतली कलाइयों की लोच में, अकृत्रिम पद-लाघव में, उसकी कमर