अँधेरे का गणित - 3 - अंतिम भाग

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अँधेरे का गणित (कहानी पंकज सुबीर) (3) आज फ़िर वो सी.एस.टी. की आरक्षण कतार में था, अभी दो रोज़ पहले ही तो उसने यहाँ आकर क़स्बे का रिज़र्वेशन रद्द करवाया था, पर तन्मय तो जा चुका था, यहाँ रुककर वो अपने अंधेरों का आख़री ठिकाना खत्म नहीं करना चाहता था, वो जल्दी से जल्दी भाग जाना चाहता था यहाँ से। दो दिन से रोज़ अँधेरी स्टेशन पर रातें बुझती देखीं थी उसने, पर तन्मय का कुछ पता नहीं चला था, शायद वो वापस जा चुका था। ग़लती भी तो उसी की थी, क्यों उसने सी.एस.टी से गोरेगाँव तक अपना प्रस्ताव