गर्मियों की ही बात है. रमा रोटियां सेंक रही थी, पसीना-पसीना होते हुए. सुमित्रा जी बेलतीं, और रमा सेंकतीं. किशोर उस समय साल भर का भी नहीं था. रसोई के ठीक आगे की छत पर छोटी काकी उसे छोटे से खटोले पर लिटा के हवा कर रही थीं. इसी बीच कुन्ती रसोई में पहुंची और रमा को दूध गरम करने का आदेश दिया- “रमा, बाई ज़रा भैया (किशोर) के लिये दूध कुनकुना कर देना.” “हओ जिज्जी, अब्बई करत. बस जा तवा पे पड़ी रोटी सेंक लें....! बस अब्बई ल्यो.” आदेश की अवहेलना! कुन्ती को ये कहां बर्दाश्त था! “अच्छा! पहले