बरकत गोविन्द सेन “दराज से रुपया गायब है।’’ जगदीश ने पहला ही कौर उठाया ही था कि जीजाजी ने वज्रपात-सा किया। “...........’’ जगदीश यह अप्रत्याशित सूचना पा सकपका गया। कुछ क्षणों के लिए उसका हाथ थाली और होठों के बीच फ्रीज हो गया। “मैं यह नहीं कहता कि रुपया तुमने लिया होगा, लेकिन तुम्हारे होते हुए उसे ले गया कौन ?” प्रश्न को जीजाजी ने छुरे की तरह तान दिया था। “तुम तो बैठे होंगे एकदम गुमसुम। सूम जैसे। किसी उस्ताद ने हाथ साफ कर लिया होगा।...इतने सीधेपन से कैसे काम चलेगा। ऐसे ही सीधे बने रहे तो दुनिया बेचकर